इन्दौर- कैंसर जैसी नामुराद बीमारी, ऊपर से उपचार के लिए प्रयुक्त होने वाली महंगी दवाएं तथा लम्बी अवधि का उपचार, तीनों मिल कर मरीजों की कमर तोड़ देती हैं, उपचार के अभाव में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोग दम तोड़ देते हैं, कैंसर की दवाओं की कीमतों पर लगाम लगाने की सारी कोशिशों पर दवा कम्पनियां, डॉक्टर तथा निजी अस्पतालों का गठजोड़ पानी फेर रहा है। अधिकांश बड़े अस्पतालों ने मरीजों को अस्पताल के मैडीकल स्टोर से ही दवाएं खरीदने की शर्त सी लगा रखी हैं। इसके लिए ट्रेड नाम का प्रयोग किया जाता है। चिकित्सक उसी ट्रेड नाम से दवा लिखते हैं जिस ट्रेड नाम से दवा उनके मैडीकल स्टोर पर उपलब्ध होती है। कम्पनियां अपना ट्रेड नाम देकर उत्पाद बना कर देने में सहयोग करती हैं। उस ट्रेड नाम वाली दवा अन्य किसी के पास मिलती नहीं, इसलिए विशेष मेडीकल स्टोर्स से दवा खरीदने की मरीज की बाध्यता हो जाती हैं। कैंसर की दवाओं की कीमतों को लेकर कैसी लूट चल रही है वह इस तथ्य से पता चलता है कि गर्भाश्य के कैंसर की जो दवा कम्पनियां सरकार को एक हजार रूपए में सप्लाई करती हैं वह खुले बाजार में दो हजार रूपए तक में मिल जाती है परन्तु यही दवा निजी अस्पतालों के मैडीकल स्टोर्स से मरीजों को 10 से 12 हजार रूपए की एमआरपी पर बिक्री की जाती हैं। मीडियाकर्मियों द्वारा कैंसर की कुछ प्रमुख दवाओं को लेकर सरकारी, खुले बाजार में व निजी अस्पतालों की दवा दुकानों में कीमतों को लेकर पड़ताल की, जानिए किस प्रकार छले जा रहे हैं कैंसर के मरीज। दवा पैक्लीटेक्सल, गर्भाश्य, मुंह व फेफड़ों के कैंसर में प्रयुक्त होने वाली यह दवा, इस दवा को कम्पनियां सरकार को एक हजार रूपए की दर से सप्लाई करती हैं, खुले बाजार में यह दो हजार रूपए में मिलेगी, इसकी एमआरपी 10 से 12 हजार रूपए तक है जिसे निजी अस्पताल के मैडीकल स्टोर द्वारा वसूला जाता है। दवा रितुझेमब-ब्लड कैंसर की इस दवा को सरकार को 8 हजार रूपए में सप्लाई किया जाता है, खुले बाजार में यह 15 से 20 हजार रूपए में मिलती है, इस दवा पर एमआरपी 30 से 40 हजार रूपए होती है। बीवोसीजेमेब- यह दवा सरकार को या बड़े कारपोरेट अस्पताल को कम्पनियां 10 हजार रू. की दर से सप्लाई करती हैं, खुले बजार में यह दवा 22 से 25 हजार रूपए में उपलब्ध है, इस दवा पर एमआरपी 38 हजार रू. तक होती जिसे निजी अस्पताल वसूलते हैं। ट्रांसट्यूजोमेब स्तन कैंसर की यह दवा जब कम्पनी ने लांच की थी तब इसकी कीमत दो लाख रूपए तक वसूली गयी थी। अब इसे कई कम्पनियां बनाती हैं और खुले बाजार में यह 16 हजार रूपए में मिल जाती है परन्तु इसकी एमआरपी 50 से 60 हजार रूपए तक होती है। निजी अस्पतालों के मैडीकल स्टोर पर एमआरपी पर बिक्री की जाती है। लगभग 8 करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश में एक भी ऐसा सरकारी कैंसर अस्पताल नहीं है जहां एक ही परिसर में इलाज की सारी सुविधाएं मौजूद हों, मजबूरन मरीजों को निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है। इंदौर तथा ऐसे बड़े शहरों के कुछ अस्पताल ऐसे भी हैं जो दवा का नाम लिखने के बजाए केवल एक कोड लिख कर देते हैं। कोड किस दवा का है इसका पता केवल अस्पताल के मैडीकल स्टोर को ही होता है। नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राईसिंग अथोरिटी ने दिल्ली-गुड़गांव के बड़े अस्पतालों में गत वर्ष एक सर्वे किया था जिसमें पाया गया था कि निजी अस्पताल कैंसर दवाओं के लिए बाजार की दर से 17 गुना अधिक तक कीमत वसूल रहे हैं। बल्क में दवा खरीदने का दबाब बना कर निजी अस्पताल अधिक एमआरपी अंकित करवाते हैं।